WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

सुप्रीम कोर्ट का तलाक पर नया फैसला: जानें तलाक की प्रक्रिया और नए नियम

सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के नियमों में बड़ा बदलाव किया है। अब छह महीने का कूलिंग ऑफ पीरियड आवश्यक नहीं। जानें आपसी सहमति और विवादित तलाक की पूरी प्रक्रिया और कानूनी अधिकार।

तलाक, जो एक बेहद संवेदनशील और जटिल कानूनी प्रक्रिया है, पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है। इस फैसले से तलाक प्रक्रिया में लचीलापन आया है और यह उन दंपतियों के लिए राहत भरा साबित होगा जो अपने रिश्ते को खत्म करने का कठिन निर्णय ले चुके हैं।

इस लेख में हम सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश, तलाक के नियम, प्रक्रिया, और कानूनी पहलुओं को विस्तार से समझाएंगे।

तलाक के नए नियम: मुख्य बातें

  • कूलिंग ऑफ पीरियड में बदलाव:
    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि रिश्ते में सुधार की कोई संभावना नहीं है, तो छह महीने का कूलिंग ऑफ पीरियड आवश्यक नहीं है।
  • आपसी सहमति से तलाक:
    यह फैसला केवल उन मामलों पर लागू होता है जहां पति और पत्नी दोनों तलाक के लिए सहमत हैं।
  • अनुच्छेद 142 का प्रयोग:
    सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विशेष अधिकार का इस्तेमाल करते हुए यह आदेश जारी किया है।

भारत में तलाक के प्रकार

  1. आपसी सहमति से तलाक (Mutual Consent Divorce)
    • जब पति-पत्नी दोनों तलाक लेने के लिए सहमत होते हैं।
  2. विवादित तलाक (Contested Divorce)
    • जब एक पक्ष तलाक चाहता है लेकिन दूसरा पक्ष सहमत नहीं होता।

आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया

चरण 1: संयुक्त याचिका दाखिल करना

दोनों पति-पत्नी पारिवारिक न्यायालय में एक साथ याचिका दाखिल करते हैं।

चरण 2: अदालत में सुनवाई

अदालत दोनों पक्षों की बात सुनती है और याचिका पर विचार करती है।

चरण 3: कूलिंग ऑफ पीरियड

पहले छह महीने का कूलिंग ऑफ पीरियड अनिवार्य था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार इसे कम किया जा सकता है।

चरण 4: दूसरी याचिका दाखिल करना

पहले याचिका दाखिल करने के 18 महीनों के भीतर दूसरी याचिका दाखिल करनी होती है।

चरण 5: अंतिम सुनवाई और निर्णय

अदालत तलाक के आदेश पारित करती है।

तलाक प्रक्रिया का सारांश

चरणविवरण
1संयुक्त याचिका दाखिल करना
2अदालत में सुनवाई
3कूलिंग ऑफ पीरियड (अब आवश्यक नहीं)
4दूसरी याचिका दाखिल करना
5अंतिम सुनवाई और तलाक का आदेश
6गुजारा भत्ता और बच्चों की कस्टडी का निपटारा

महत्वपूर्ण शर्तें

  1. एक साल का अलगाव:
    तलाक के लिए पति-पत्नी को कम से कम एक साल तक अलग रहना चाहिए।
  2. सहमति की कमी:
    यदि दोनों पक्षों में सुलह की संभावना नहीं है तो ही याचिका स्वीकार होगी।
  3. मुद्दों का समाधान:
    गुजारा भत्ता, बच्चों की कस्टडी, और संपत्ति वितरण जैसे सभी मुद्दों का निपटारा आवश्यक है।

सुप्रीम कोर्ट का नया फैसला और अनुच्छेद 142 का महत्व

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए कहा है कि:

  • यदि दंपति के रिश्ते में सुधार की कोई संभावना नहीं है, तो तलाक के आदेश में तेजी लाई जा सकती है।
  • कूलिंग ऑफ पीरियड को खत्म या कम करने का अधिकार अदालत के पास है।

यह फैसला दंपतियों को लंबे समय तक चलने वाली कानूनी प्रक्रिया से राहत प्रदान करेगा।

तलाक से जुड़े कानूनी अधिकार

  • सहमति वापस लेने का अधिकार:
    यदि एक पक्ष तलाक की सहमति वापस लेता है, तो अदालत उस पर विचार कर सकती है।
  • संतोषजनक समाधान की आवश्यकता:
    अदालत तभी तलाक का आदेश देगी, जब उसे दोनों पक्षों के बीच किसी भी मुद्दे पर विवाद न होने का संतोष हो।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने तलाक की प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव लाया है। इससे दंपतियों को अपने रिश्ते को खत्म करने के लिए अधिक लचीलापन और सुविधा मिलेगी। यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी एक सकारात्मक कदम है।

यदि आप तलाक की प्रक्रिया में हैं या इसके बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं, तो एक अनुभवी वकील से सलाह लें और सभी कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखें।

यह फैसला उन दंपतियों के लिए राहत प्रदान करता है, जो लंबे समय से रिश्ते में तनाव महसूस कर रहे थे और अब अपने जीवन में आगे बढ़ने का अवसर चाहते हैं।

Disclaimer: यह लेख केवल जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। कृपया कानूनी सलाह के लिए किसी वकील से संपर्क करें।

Amit is the founder of Just Newson, with over 5 years of experience in blogging. He specializes in providing reliable updates on government schemes (Sarkari Yojana) and trending news. Amit is committed to delivering accurate, actionable, and well-researched content that helps readers stay informed about important government initiatives.

Leave a Comment